सुमेधा अग्रवाल के संयोजन में अग्रज नाट्य दल द्वारा रायपुर में पाँच दिवसीय फिल्म मैकिंग वर्कशाप के साथ शाम के समय दो दिनों तक नाट्य मंचन और फिर फ़िल्मों का प्रदर्शन संस्कृति विभाग परिसर में बने आडिटोरियम में रखा गया है । आज पहले दिन जबलपुर के कलाकारों ने संदीप पांडे द्वारा लिखित और निर्देशिक नाटक सल्तनत की प्रस्तुति की । एक बूढ़े व्यक्ति की मानसिकता जिसने बहुत मुश्किल से अपना घर बनाया है और जो अपने दोनो बेटों बहुओं के व्यवहार से दुखी है और अपने घर को अपनी सलत्नत समझता है के सपने को दर्शने वाली कहानी है । इस मनोवैज्ञानिक कथा में मनीष तिवारी ने बहुत ही अच्छा और प्रभावी अभिनय किया ।
सुबह से शाम तक चलने वाली इस फिल्म मैकिंग कार्यशाला का संचालन राहुल शंकल्या कर रहे हैं जो NSD और FTI पूना के पासआऊट हैं और मुम्बई में महत्वपूर्ण फिल्म निर्देशकों के साथ काम कर रहे हैं ।
इस पाँच दिवसीय आयोजन में रविवार 2 जून सुनील चिपडे के निर्देशन मे बिलासपुर के कलाकार वेंटिलेटर नाटक की प्रस्तुति करेंगे । समारोह में लेखनी स्वयं के अन्तर्गत आज राहुल सिंह ने अपनी कथा फूफाजी के अंशों का पाठ किया । कल रविवार के कहानीकार श्रध्दा थवाईत , सोमवार को लेखनी स्वयं में राजेश गनोदवाले तथा राहुल शंकलया द्वारा निर्देशित फिल्म मेरी निम्मो दिखाई जायेगी । मंगलवार 4 जून को संदीप पांडे द्वारा निर्देशित फिल्म चौसर फ़िरंगी का प्रदर्शन होगा ।लेखनी स्वयं मे सुमेधा अग्रवाल चर्चा करेगी ।समारोह के अंतिम दिन 5 जून को शार्ट फिल्म का प्रदर्शन होगा ।
सबसे पहले दूसरों के सामने कविता मुझे परसाईजी ने पढ़वाई । जबलपुर के हितकारिणी स्कूल में नरेश सक्सेना , सोमदत्त श्रीबाल पांडे और मुझे कविता पढ़ने परसाईजी ने बुलाया । मै झिझक के साथ धीरे -धीरे कविता पढ रहा था पीछे से परसाईजी गुस्से मे कहा कि ज़ोर ज़ोर से कविता पढ़ो और मैने पहली बार मंच से कविता पाठ किया । कविता सुनने के बाद परसाईजी ने क्या कहा , पूछने पर विनोदजी ने कहा कि तुम्हारी कविता समझ में नही आती । वे हमेशा यही कहते की तुम्हारी कविता हमारे समय की कविता नही है , बाद के समय की कविता है । मुक्तिबोध तुमको पसंद करते हैं तो कुछ कहा ही नही जा सकता ।
ये बात देश के सुप्रसिद्ध कवि , उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल ने आपसी बातचीत में बताई ।
रायपुर में चल रहे नाट्य शिविर के समापन अवसर पर विनोदजी द्वारा लिखी गई कविताओ का दृश्य पाठ और उनकी कहानी का नाट्य मंचन के लिए उनसे बातचीत करने मै , सुभाष मिश्र , आनंद हर्षुल , पुंज प्रकाश और संतोष राजपूत से उनके घर गये तब विनोदजी ने अपने बचपन से लेकर अपनी रचना प्रकिया के बारे मे विस्तार से बातचीत की ।
विनोदजी ने हरिशंकर परसाईजी से अपनी पहली मुलाक़ात की याद करते हुए कहा कि गजानन मुक्तिबोध जी ने मुझे एक चिट्ठी परसाईजी के नाम से दी और कहा की ये चिट्ठी उन्हीं के हाथ में देना । शायद उस चिट्ठी में मेरे बारे में कुछ लिखा होगा ।जबलपुर के एग्रीकल्चर कालेज में पढ़ाई के समय के अपने साहित्यकार मित्रों का ज़िक्र करते हुए वे बताते हैं की नरेश सक्सेना इंजिनियरिंग कालेज मे और सोमदत्त वेटनरी कालेज में पढ़ते थे ,मेरे मित्र थे । ग्वालियर की तीन साल की नौकरी में निदा फ़ाज़ली , ओमप्रभाकर , शानी और नरेश सक्सेना जिनके पिता ग्वालियर में नौकरी करते थे फिर से साथ मिला ।
परसाईजी और मुक्तिबोध से जुडे अपने संस्मरण साझा करते हुए वे बताते हैं की मुक्तिबोधजी की वजह से पहली बार मेरे जैसे नये कवि की कविता कृति में प्रकाशित हुई । उन्होने बताया कि पहले उन्होने कविता लिखी फिर कहानी पर कहानी पहले प्रकाशित हुई । कल्पना पत्रिका में प्रयाग शुक्ल के कारण मेरी कविता छपी । ये संयोग था की सबसे बड़ा कवि मुक्तिबोध मेरी कविता छपने भेज रहा था ।
परसाईजी को याद करते हुए परसाईजी के संपर्क में कभी ऐसा नही लगा की किसी के पहुँचने से उन्हे असुविधा होगी । वे लिखते -लिखते रोक देते । हमेशा हँसते रहते , मुस्कुराकर बात करते । यंगस्टर को उनके पास जाना अच्छा लगता । कोई उनसे अपने लिखे पर कुछ लिखने कहता तो वे कहते - मेरे लिखने यदि तुम बड़े आदमी बनते हो तो मै लिख देता हूँ । वे कहते हैं शरद जोशी थोड़े टेढ़े थे पर परसाईजी टेढ़े नही थे ।
परसाई और मुक्तिबोध से जुडे एक हँसी मजाक के संस्मरण की याद करते हुए विनोद कुमार शुक्ल बताते हैं की परसाई की एक कहानी सुनाकर ख़ुश हँसते । एक कवि कविता लिखता है और अपने लिखे को सुनाने बैचेन रहता है । एक बार
कवि मरणासन्न हो जाता है । और अपनी उस अवस्था में भी उसकी इच्छा होती है की वो अपनी कविता सुनाये । एक व्यक्ति जो उसकी कविता को एपरिशियेट करता था , जब वो उससे मिलने आया तो उसने मरणासन्न अवस्था में भी अपनी कविता उसे सुनाई । कविता सुनने के बाद देखने आया व्यक्ति मरणासन्न हो गया और कवि ठीक हो गया ।
कवि मुक्तिबोध कहते थे की , परसाई ये हम कवियों के लिए कहते हैं । उनके संबंध आपस में बहुत अच्छे थे । अबके लोगो के आपस में उतने अच्छे नही है ।
विनोद कुमार शुक्ल से उनकी रचना प्रकिया और कविता , कहानी , उपन्यास में आने वाले बिम्बों के बारे में पूछे जाने पर वे कहते हैं की “ जब आप रचना प्रकिया में लिखते -लिखते आगे बढ़ते चले जाते हैं ये उसी तरह की बात है जैसे दृश्य मे देखने की बात हुई ।आप ज़मीन पर चलते हुए आगे बढ़ते चले जाते हैं , जितना आगे बढ़ेंगे उतना जो आपके चलने से आपका देखा हुआ उपस्थित होता है । और आगे जहाँ रूकेंगे तो
आगे बढ़ोगे तो बढ़ते -बढ़ते लगता है इस तरफ़ चले तो , उस तरफ़ चले तो अच्छा लगेगा ।”
आप अपने उपन्यास में जो नये -नये बिम्ब , फिलिंग लाते तो आपको डर नही लगता - ये पूछे जाने पर विनोदजी कहते हैं की “ उसमें डरना क्या ? वे अपनी एक कहानी हरप्रसाद और हरिप्रसाद जो अभी अंग्रेज़ी में अनुवादित भी हुई है और फ़्रांस वर्ल्ड फ़ेयर की थीम इंडिया में आने वाली है ,की चर्चा करते हुए कहते हैं कि एक फार्मल क़िस्म का पुकारना हुआ । एक ही व्यक्ति का पुकारने के हिसाब से व्यक्तित्व बदल जाता है ।
अपनी कविता , कहानी और उपन्यास की नाट्य प्रस्तुति को लेकर पूछे गये प्रश्न के जवाब में विनोदजी कहते हैं की नाट्य प्रकिया के दौरान यदि निर्देशक लेखक को भी शमिल कर लेता है तो इसमें कोई बुराई नही है। यह लेखक के प्रति उदारता ही होगी ।किसी कृति को दूसरे फ़ार्म में प्रस्तुत कर रहे हैं , यह तो अच्छा है ।वे मणिकौल द्वारा उनके उपन्यास नौकरी की क़मीज़ पर बनाई गई फिल्म का ज़िक्र करते हुए कहते हैं की मणिकौल ने मुझे और मेरे परिवार को प्रकिया का हिस्सा बनाया । वे कहते की नौकरी की क़मीज़ के संतू बाबू ख़ुद विनोद कुमार शुक्ल हैं ।
हाल ही रचना मिश्रा की गई अपनी कविताओ की दृश्य प्रस्तुति से वे प्रसन्न नज़र आये । विनोदजी ने कहा कि मेरी रचनाओं को दृश्य में प्रस्तुत करना आसान है । मै दृश्य में ही सोचकर लिखता हूँ ।कविता के शब्दों को बार-बार किसी न किसी तरीक़े से इस तरह दोहराया जाए की वह कविता दर्शक तक पहुँचे ।हम किसी भी कविता के अलग -अलग तरीक़े से बहुत से अर्थ लगाते हैं । उस अर्थ के साथ पठन में कुछ इस तरह की रूकावट होनी चाहिए की आप उसके अर्थ के साथ ठहर सकें ।वे कविताओ के नाट्य मंचन को अच्छी पहल बताते हुए कहते हैं की कवि को किताब से बाहर निकालना होगा । कविता किसी ना किसी बहाने बाहर आये , ये अच्छा है ।
आपकी रचनाओं का स्रोत कहाँ से आता है , यह पूछे जाने पर विनोदजी कहते हैं की हर लेखक अपने जीवन अनुभव से ही स्त्रोत लेता है । बचपन की स्मृतियाँ कभी नही जाती । हर बीता पल स्मृति है । बचपन की स्मृति ख़ज़ाने की तरह होती है। बचपन माँ -बाप की वजह से उसंबंधों की गहराई का वक़्त होता है ।उन्होने बचपन की स्मृतियों और खेले जाने वाले खेल को केन्द्र में रखकर लिखी गई कहानी का वाक्या सुनाते हुए बताया की हम सात आठ बच्चे राजनांदगाँव में आकाश में उठती चील की परछाईं का पीछा कर , परछाईं के नीचे काग़ज़ रखकर रूपये बनाने का खेल खेलते ।धूप में इस खेल को खेलते हम आकाश की ओर देखते और उड़ती चील की परछाईं पर काग़ज़ का टुकड़ा रखकर सोचते की ये एक रूपये का नोट बन जायेगा ।
विनोद कुमार शुक्ल से अपनी इस मुलाक़ात को साझा करते हुए युवा नाट्य प्रशिक्षक पुंज प्रकाश कहते हैं की
“आज का दिन व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए बड़ा ही ऊर्जावान और ज्ञानवर्धक रहा। रायपुर की कार्यशाला तो कुशलतापूर्वक संचालित हो ही रही है। आज हम हिंदी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर आदरणीय विनोद कुमार शुक्ल जी से मिलने उनके आवास पर गए। उनकी कविता, कहानियों और उपन्यासों का दीवाना हूँ इसलिए उनसे मिलना और कुछ घंटे साथ बिताना मेरे लिए ज्ञान के सागर में गोते लगाने जैसा था। वैसे विनोद जी बारे में एक बात प्रसिद्ध है कि वो अमूमन ज़्यादा कुछ बोलते नहीं हैं बल्कि उन्हें जो बोलना होता है अपनी रचनाओं से बोलते हैं लेकिन जब बैठकी लग जाए तो कुछ ना कुछ काम की बातें भी निकल ही आतीं हैं।
तो आज उनकी बातचीत में मुक्तिबोध, परसाई आदि से जुड़े अद्भुत संस्मरण थे, बीते दिनों के और उनके जीवन और रचनाकर्म से जुड़े एक से एक ज्ञानवर्धक जानकारियां थीं। नाटक पर वार्ता थी, कविता पर वार्ता थी, उपन्यास पर वार्ता थी और जीवन के अनुभव व कल्पना की एक से एक बात तो थी ही। सारी बातें लिखना तत्काल तो संभव नहीं लेकिन उनकी एक बात शेयर कर रहा हूँ तत्काल - "मेरी सारी रचनाएं मंच के लिए सहज हैं लेकिन कविता, कहानी या उपन्यास जैसी विधा को मंचस्थ करते हुए यह सतर्कता बरतने की ज़रूरत है कि दृश्य और शब्द का उचित समन्वय हो और लिखे शब्दों का सही सही अर्थ लोगों तक प्रवाहित करने का प्रयत्न हो, ना कि प्रस्तुति रंगमंचीय जादू बनकर रह जाए। मंचन करते हुए बाकी चीज़ों (शैली, संगीत, दृश्य प्रभाव आदि) का प्रयोग शब्द के अर्थ को उभारने में सहायक हो ना कि कुछ और। वैसे मंचीय कृति अपनेआप में एक स्वतंत्र कृति होती है, और होनी भी चाहिए। रंगमंच के समुहिकताबोध की कला है, तो ऐसा होना स्वाभविक भी।"
विनोद कुमार शुक्ल का उपन्यास नौकर की कमीज़ और दीवार में एक खिड़की रहती है, हिंदी साहित्य में बसंत की फुहार की तरह है; जिन्होंने पढ़ी है वो इस बात को महसूस करते हैं। किसी भी संवेदनशील ज्ञानी से मिलने का अर्थ है आप सादगी और कोमलता का साक्षात्कार भी कर रहे हैं साथ साथ। बहरहाल, मुझे थोड़ा और समृद्ध करने के लिए विनोद कुमार शुक्ल सर के साथ ही साथ इस यात्रा के सहयात्री सुभाष मिश्रा सर, आंनद हर्षुल और संतोष राजपूत का आभार। बड़ों से मिलना अनुभव और अनुभूति के समुद्र में गोते लगाने जैसा है और परमानंद की प्राप्ति का सुकून भी।
बहरहाल हम विनोदजी द्वारा बच्चो के लिए लिखी गई कविताओ का मंचन रचना मिश्रा के निर्देशन में 12 जून को रायपुर के वृंदावन हाल में करने जा रहे हैं।
विनोदजी की कविता
टेढ़े -मेढ़े नक़्शे
टेढ़े -मेढे द्वीप
टेढ़ा -मेढ़ा समुद्र
टेढ़ी -मेढ़ी नदियाँ
इधर -उधर तक फैला
ओर छोर आकाश
टेढ़े -मेढ़े होंगे
उसके कोर किनार
टेढ़ा -मेढ़ा है सब
चार दिशा दस कोनों में
कहीं अनंत
कहीं अधिक अनंत
छोटी बच्ची का गढ़ा हुआ सब
कहता था एक बूढ़ा संत ।
रायपुर में चल रही फिल्म मैकिंग वर्कशाप के तीसरे दिन आज लेखक स्वयं श्रृखंला में संवेदनशील पत्रकार , कला समीक्षक , पर्यावरण प्रेमी राजेश गन्नोदवाले ने अपनी पत्रकारिता के अनुभव को साझा करते हुए एक पेड कटने की अंतरकथा और भीगती हुई नदी पर एक अलग अंदाज की लिखी अपनी कविता जो बनारस की गंगा और सिरपुर की महानदी को देखते हुए लिखी गई ,का पाठ किया । इसके पश्चात संदीप पांडे द्वारा निर्देशित फिल्म चौसर फ़िरंगी का प्रदर्शन किया गया । जबलपुर से जुडे रंगमंच के कलाकारों और जबलपुर में फ़िल्माई गई चौसर फ़िरंगी एक नई कहानी , नये ट्रीटमेंट के साथ सामने आती है ।
अग्रज संस्था , सुमेधा अग्रवाल , अरूण भांगे आदि के मिलेजुले प्रयास और संस्कृति विभाग की सहभागिता से संस्कृति विभाग के आडिटोरियम में पाँच दिवसीय फिल्म मैकिंग कार्यशाला राहुल शांकल्य की देखरेख मे हुई इसी के साथ मध्यप्रदेश में जबलपुर के कलाकार , निर्देशक राहुल शांकल्य और संदीप पांडे द्वारा निर्देशित दो फिल्मे “मेरी निम्मो “ और चौसर फ़िरंगी का प्रदर्शन हुआ ।पहले दिन संदीप पांडे द्वारा निर्देशित नाटक सल्तनत और दूसरे दिन अग्रज बिलासपुर द्वारा वेंटिलेटर नाटक की प्रस्तुति हुई ।
चौसर फ़िरंगी एक रात की कहानी है जो थोड़ी कसावट और तकनीकी दृष्टि से सुधार की माँग करती है । फिल्म में ज़्यादातर थियेटर के ऐक्टर हैं इस वजह से उनका अभिनय स्वाभाविक है । फिल्म में वह एलीमेंट नदारद है , जो बार- बार खोजकर फिल्म देखने के लिए प्रेरित करे । संदीप पांडे की इस फिल्म की ही तरह उनका नाटक सल्तनत है । जो एक बूढ़े असुरक्षित आदमी की मनोदशा , रात का स्वप्न है जो उसके पक्के मकान के रूप में बनी कथित संपत्ति है और यही उसकी सल्तनत है । इस नाटक में मनीषतिवारी , अनुदीप ठाकुर , प्रतीक पचौरी , शंकित दहायत ने बहुत अच्छा अभिनय किया है ।नाटक में स्वप्न और सच्चाई को दिखाने के लिए कुछ और प्रयोग करना होगा जिसकी बात हमने नाटक के डायरेक्टर संदीप पांडे से आपसी चर्चा में की है ।
राहुल शांकल्य की फिल्म “मेरी निम्मो “दर्शकों को बाँधे रखती है । एक बच्चे हेमु का अपने से बहुत बड़ी लड़की से विवाह करने की इच्छा , उसके साथ अपने संबंधों को जोड़कर देखना , ये एक नया और गंभीर विषय है जिसे राहुल शांकल्य ने बहुत बढिया से प्रस्तुत किया है । इस फिल्म में अंजली पाटिल जैसा सक्षम अभिनैत्री के साथ हेमु के रूप करण दवे भी ग़ज़ब का अभिनय किया है । इस फिल्म में विवेचना रंगमंडल के कलाकार अरूण पांडे , नवीन चौबे , सीताराम सोनी , सूरज राय सूरज , विवेक पांडे , स्वर्गीय आशा तिवारी , ऋषि यादव , सुनयना अग्रवाल , अनुदीप ठाकुर , अमर सिंह परिहार आदि की भूमिका भी सराहनीय रही ।दोनो ही फ़िल्मों को देखना मेरे लिए जबलपुर में अपने दोस्तो और वहाँ जिये हुए समय को फिर से जीने जैसा था ।
लेखक स्वयं के माध्यम से नाट्य फिल्म प्रस्तुति के पहले 15 मिनट लेखक स्वयं श्रृंखला में साहित्यिक चर्चा सार्थक रही । राहुल सिंह से उनकी लधु रचना फूफा जी के अंश को सुनना हो या श्रध्दा थवाईत से उनकी कहानी हवा में फड़फड़ाती चिट्ठियाँ के अंश । राहुल शांकल्य और राजेश गन्नोदवाले से उनकी कविता और सुमेधा अग्रवाल से उनकी कहानी । फिल्म एंव नाट्य समारोह में एक आयोजक , नाट्य और फिल्म दर्शक के नाते मुझे लगा की दिखाई गई फ़िल्मों के बाद उन पर चर्चा होगी पर ऐसा नही हुआ।
चूकिं एक सजग दर्शक के नाते मै किसी आयोजन के बाद जो देखा ,सुना है उसे यथासंभव लिखने , पोस्ट करने का प्रयास करता हूँ , सो मैने इस आयोजन से जुडे कार्यक्रम पर कुछ पहले लिखा ।
वेंटिलेटर नाटक पर अरूण भांगे के आग्रह पर थोड़ा ज़्यादा लिख दे रहा हूँ ।
वेंटीलेटर पर चढ़े सिस्टम को गुदगुदी कि नहीं ऑक्सीजन की जरूरत होती है
नाटक के सूत्रधार अरुण भांगे मेरी पत्नी
रचना के प्रिय कलाकार हैं ।अरूण बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं । अब वेंटिलेटर नाटक देखने के बाद इसमें एक और नाम जुड़ गया ,वह है दूसरे सूत्रधार मोहम्मद शरीफ का । दोनों ने छत्तीसगढी नाचा के जोकर के रूप में गजब का अभिनय करते हुए अपनी भाव मुद्रा ,भाषा शैली से दर्शकों का खूब मनोरंजन किया ।मैंने जब रचना से इस नाटक देखने चलने कहा तो वह कहने लगी कि मुझे गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों की हालत नहीं देखी जाती ।मैंने कहा कि नहीं नाटक में बहुत से रंग दृश्य होते हैं , चलो देखने । नाटक देखकर लौटते समय उसने कहा कि मुझे नाटक देख कर बड़ा मजा आया ।बहुत हंसी आई ।मजा आ गया ।अग्रज बिलासपुर की यह नाटक प्रस्तुति हमारे सिस्टम में चहुँओर घुस आए भष्टाचार की बात कहते हुए छोटी-छोटी रोजमर्रा की घटनाओं को एक कोलाज में प्रसुत करती है । इन्हें देखते , सुनते हुए हमें लगता है कि हमने पहले भी बहुत से सोशल साईड ,लाफ्टर चैलेंज में इसे देखा है पढा है । दृश्य या डायलाग पूरा होने के पहले ही हम जानते हैं कि अब आगे क्या होगा । स्कूल के टीचर का एक ऑफिस में अपने पति की पेंशन के लिए जाना और ऑफिसर द्वारा रिश्वत की मांग करना फिर उसी ऑफिसर का अपनी बेटी के नम्बर कम आने पर स्कूल में जाना और उसी टीचर को अपनी बेटी को ,नैतिकता और सामाजिक मूल्यों के साथ ईमानदारी का पाठ पढ़ाने के लिए कहना । एक बीमार बच्ची जिसे थैलेसेमिया की बीमारी के कारण बार -बार खून की जरूरत होती है और उसे बहुत से लोग ख़ून देते हैं । वह लड़की आते जाते लोगों को धन्यवाद देती है और पूछे जाने पर कहती है कि मैं नहीं जानती कि मुझे कौन ख़ून देता है मै नही जानती ।इसलिए मैं सबको धन्यवाद करती हूं ।ऐसी एक और बच्ची जिसका पिता सरकारी आदमी है ,अपनी मां के साथ जब बाजार में जाती है और उसकी मां एक अन्य औरत से ऊपर की कमाई की महिमा बताती है ।और सलाह देती है कि सैलरी से कुछ नहीं होता है रिश्वत की कमाई से होता है ।अपनी माँ से यह सुनकर जब वह अपने पिता के साथ होती है तो सभी आने जाने वालों को धन्यवाद देती है क्योंकि उसे पता नहीं किस किस से रिश्वत से मिले पैसे से उसके जीवन में ऐशो आराम है ।
एक अन्य घटनाक्रम में जिसमें बेटी बेटे की जरूरत के लिए आफिस की स्टेशनरी के लाना और बेटी की ज़रूरत के लिए ऑफिस के काम के लिए आये व्यक्ति से दराशि मांगना । ये कुछ घटनाएँ हैं जो चारों ओर फैले भष्टाचार की बानगी बताते हैं ।
इन सारी घटनाओं और सूत्रधार के रूप में जोतके द्वारा शोले फिल्म के ठाकुर और गब्बर के संवाद या दीवार फिल्म मे अमिताभ बच्चन और शशि कपूर की मिमिक्री करके उनके संवादो को टूस्टि करके हास्य पैदा करना , थोड़ी देर के लिए गुदगुदा तो सकता है पर एक गंभीर विषय को हल्का भी बनाता है ।
हास्य और व्यंग्य मे एक बारीक रेखा होती है और व्यंग्य देख कर ,पढ़कर पढ़ने देखने वाले व्यक्ति को खिसियानी हंसी हंसकर अंदर तक तिलमिलना चाहिए ।व्यंग्य हमारे भीतर करुणा की अंतर धारा को प्रवाहित करता है । निर्देशक सुनिल चिपडे ने नाटक में इप्टा के नाटको मे गाए गए जनगीतो जिसे का उपयोग बेहतर उपयोग किया है ।
दमा दम मस्त कलंदर दमा दम मस्त कलंदर मैं हूं थानेदार रे भैया मैं हूं सूबेदार एक मुर्गा खाता था अब खाता हूं चार ।इसी तरह मुक्तिबोध की कविता “अंधेरे में के अंश का उपयोग भी बेहतर तरीक़े से किया गया है ।अग्रज बिलासपुर की पूरी टीम जिसमे क़रीब 18 कलाकार थे सभी ने अपनी ओर से पूरे उत्साह और लगन से वेंटिलेटर को संभालने की कोशिश की ।
रायपुर में चल रहे तीसरे रायपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन 13 दिसम्बर युवा फ़िल्मकारों और अच्छी फ़िल्मों के नाम रहा । दूसरे दिन की शुरुआत हुई संतोष राजपूत निर्देशित फिल्म बादशाह हद का खात्मा जबलपुर में बनी हसन मध्य प्रदेश से निकलकर पूरे देश में छा रही है शहादत हसन मंटो की कहानी पर आधारित मंटो की देशी रवायत और उस वक्त के भारत के माहौल पर जिस तरह मंटो ने कहानी लिखी उसकी एक सीधी रेखा है मंटो भारतीय हिंदी साहित्य उर्दू साहित्य का एक जाना पहचाना नाम है जिस की कहानियों का लगातार मंचन भी किया जा रहा है और उनकी कहानियों पर लगातार कई प्रकार के प्रयोग कर फिल्मों का निर्माण भी किया जा रहा है कहानी को चुनना निर्देशक के लिए एक विपरीत धारा को चुनने का प्रयास है दौर में जब युवा प्रेमचंद्र और मंटो और उनके आसपास के साहित्यकारों को भूल चुके हैं और कमर्शियल सिनेमा का दौर बहुत तेजी से कल युग में पनप रहा है ऐसे वक्त में बादशाह हद का खात्मा एक मजबूत ब्यूटी ऑफ लाइफ इस फिल्म के बाद शाम को ब्यूटी ऑफ लाइफ आशीष कुमार किस फिल्म दिखाई गई इस फिल्म भारत का विश्व में हो रहे एसिड अटैक से संबंधित था आज की युवा पीढ़ी बदला लेने के इस मोड़ पर इस जानलेवा मोड़ पर पहुंच चुकी है जहां उन्हें जीवन एक खिलौने के भाती लगता है और अपना बदला लेने के लिए एसिड का इस्तेमाल करना आम होता जा रहा है । आज का दौर फ़िल्म के बदलते मौसम का है जहां पूर्वाग्रह से विपरीत धाराओं की फिल्मों का दौर शुरू हो गया है ।छत्तीसगढ़ के सिनेमा के जाने माने कलाकार विजय मेहरा,उषा वैष्णव,श्रीमंत बड़ाईक और अनिरुद्ध दुबे ने छत्तीसगढ़ी सिनेमा के इतिहास वर्तमान और प्रसंगिगता पर आलोचनात्मक बात चीत की तथा निर्देशक योग मिश्र जी ने छत्तीसगढ़ी फिल्मो के बदलते क्लेवर और तकनीकी कमियों तथा नई तकनीक के बारे में बारीक जी ने बातचीत की इन सभी गतिविधियों के बाद शाम 7 बजे शुरू हुई विख्यात फ़िल्म लेखक और निर्देशक अशोक मिश्र जी की फ़िल्म टापरा टाकीज़ यह फ़िल्म सतना में शूट हुई है फ़िल्म के अंदर फ़िल्म को बनते देखना एक तीसरी फिल्मी दुनिया को देखना है जिसे दर्शकों ने बहुत सराहा और फ़िल्म के बारे में बताते हुए पल्लवी शिल्पी जी ने फ़िल्म की असली कहानी बताई जिससे फ़िल्म का असली रोमांच और बढ़ गया। रचना मिश्र जी ने आज का मंच सम्हाल और कार्यक्रम को सहजता से आगे बढ़ाया इस मौके पर रायपुरियंस ने बहुत उत्साह से फ़िल्म देखी और अपनी बातें भी रखी ।
फेस्टिवल में आज की फ़िल्म -
» 2 बजे से 5 बजे तक -
फ़िल्म पंजाब 1984
निर्देशक - अनुराग सिंह
» 5:30 से 7:30 बजे तक
शार्ट फ़िल्म - ब्लेक ब्राउन- व्हाइट,सीन एन्ड वैनिशड,आफत,मंडी,पगली,इन एक्ट।
» शाम 7:30 बजे से
तुरुप , निदेशक - इकतारा कलेक्तिव
छत्तीसगढ़ फ़िल्म एंड विसुअल आर्ट सोसाइटी के द्वारा आयोजित तीसरे रायपुर इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल का आज छठवा दिन है, जिसमे आज शाम 5:30 से 6:30 तक VFX (Visual F X) की मास्टर क्लास आयोजित की गई। अतिथि के रूप में सुभाष मिश्र, रचना मिश्रा और भिलाई से VFX के एक्सपर्ट प्रोसेनजीत मजूमदार एवं सुब्रमण्यम उपस्थित थे। जिन्होंने Film Making की basic जानकारियां दी। क्लास के चलते बच्चों के मन मे सवाल और उत्साह उत्पन्न हुआ, जिससे उन्होंने यह जाना कि Film Making में इसका क्या महत्व है।
एक अच्छे कलाकार को जेम्स बांड की तरह होना चाहिए - रॉबिन दास राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सहयोग से रायपुर में संचालित थियेटर एप्रिसियेशन कोर्स के प्रशिक्षार्थियों को संबोधित करते हुए देश के प्रख्यात डिजाईनर, रंग-निर्देशक, पेंटर तथा अभिनेता रॉबिन दास ने कहा कि एक कलाकार को जेम्स बांड की तरह होना चाहिए । कलाकार को अपने घर परिवार, दोस्तों और समाज के साथ सरोकार रख कर रंगकर्म करना चाहिए । कलाकार के भीतर एक तड़प, छटपटाहट होनी चाहिए, उसके पास आब्जर्वेशन की दृष्टि होनी चाहिए तथा काम के प्रति पैशन, तत्परता, लगन और सर्मपणभाव होना जरूरी है । अच्छा कलाकार अपने आस पास की प्रकृति से संबंध रखते हुए साहित्य, पेंटिंग, शेरो-शायरी, किस्से-कहानी, कहावतें-मुहावरे आदि के साथ जीवंत संपर्क रखता है । यदि कोई ऐसा नहीं करता है तो वो अच्छा कलाकार नहीं बन सकता ।
श्री रॉबिन दास ने विद्यार्थियों से अभिनय के बारे में बहुत सी बातें की और उन्हें अभिनय की बारीकियां समझाई और अभिनय करके और उनसे अभिनय करवा कर दिखाया । उन्होंने बताया कि एक अभिनेता को पानी की तरह होना चाहिये ताकि वो पानी की तरह बर्तन के अनुरूप आकार ले सके। उन्होंने बताया कि बड़ी बड़ी बातों से कुछ नही होता, अभिनेता बनने के लिए हर एक सेकंड, हर एक मिनट और हर एक घंटे मेहनत करनी होती है। एक अभिनेता को साहित्य से लगाव होना बहुत ही जरूरी है, कविता, कहानियों, कहावतों, संगीत से प्यार किये बिना अभिनय संभव ही नही है। उन्होंने बताया की अगर किसी व्यक्ति को हीरो, हिरोइन या विलन बनाने का सपना हो तो अभिनय न करे। उन्होंने एक कलाकार के लिए राजनीति शास्त्र को भी जरूरी बताया। इसके अलावा उन्होंने विद्यार्थियों को बहुत से थिएटर गेम्स खिलाये जिसमे हर किसी ने कुछ अलग सीखा। छत्तीसगढ़ फिल्म एंड विजुअल आर्ट सोसायटी द्वारा कराए जा रहे इस थियेटर एप्रिसियेशन कोर्स का यह पांचवा दिन था, जिसमे रॉबिन दास जी ने क्लास ली I इस कोर्स में कल से दो दिन तक प्रख्यात अभिनेता आलोक चटर्जी प्रशिक्षार्थियों कि क्लास लेंगे, उसके पश्चात् मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय के डायरेक्टर संजय उपाध्याय तथा मुंबई यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर तथा निर्देशक शाफाक खान क्लास लेंगे I 20 तारिख को इस थियेटर एप्रिसियेशन कोर्स का समापन होगा I
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